एक सुबह, एक शाम, एक रात

एक सुबह,
बांस की पत्ती के कोने पर अटकी
ओस की बूँद
कैद कर ली थी
आँखों के कैमरे में
आज भी कभी-कभी वो
बंद पलकों में
उतरती है,
… …
एक शाम,
पक्षियों के कलरव को
सुना था बैठकर
छत की मुंडेर पर,
जिसकी धुन
मन में अब भी
जलतरंग सी
बजती है,
… …
एक रात
तुम्हारी तपती हथेलियों का स्पर्श
महसूस किया था
अपने गालों पर,
कानों के नीचे वो छुअन
आज भी
धधकती है,
… …
नहीं सही आज
वो सुबह, वो शाम, वो रात,
वो ओस,वो पंछी,
वो तुम्हारी छुअन
पर उनकी यादें अब भी
सीने में
करकती है.

(photo by fotosearch.com)

32 विचार “एक सुबह, एक शाम, एक रात&rdquo पर;

  1. वो सुबह, वो शाम, वो रात,
    वो ओस,वो पंछी,
    वो तुम्हारी छुअन
    पर उनकी यादें
    अब भी, सीने में
    करकती है.
    खूबसूरती से आपने खूबसूरत पलों को संजोया है
    पर फिर भे करकन है
    बहुत खूब

  2. कविता अच्छी है , यह तो मैं भी कह रहा हूँ
    पर ,
    ”एक शाम,
    पक्षियों के कलरव को
    सुना था बैठकर
    छत की मुंडेर पर,
    जो मन में आज तक
    जलतरंग सी
    बजती है ………. ”
    अब आगे वाक्य बनाइये , यूँ ही —-
    ” कलरव जलतरंग सी बजती है ! ”
    —- यह वाक्य व्याकरण की दृष्टि से असुद्ध है , क्योंकि
    कलरव संज्ञा पुल्लिंग शब्द है !
    —- कविता में कलरव शब्द के विधान को यथेष्ट न्याय
    नहीं मिल सका है !
    अगर ऐसा ” फेमिनिस्ट डिस्कोर्स ” के चलते आपने किया हो
    तो मेरे सरे शब्द वापस !

    1. हाँ, अमरेन्द्र, आपसे सहमत हूँ. वस्तुतः मैं “चहचहाहट” लिख रही थी. यह शब्द कुछ अटपटा लगा तो मैंने “कलरव” कर दिया और ध्यान नहीं दिया कि मैं एक स्त्रीलिंग शब्द के स्थान पर पुल्लिंग शब्द रख रही हूँ.

  3. हाँ यादे याद आती है ,बहुत याद आती है !!! याद आती है उन लम्हों की जिनमे हम थोड़ी देर के लिए डूब कर मायावी दुनिया के तिलिस्म से ऊपर उठ गए थे !!!

    Aradhana, you made me travel back in time and have a look at my own poem written in my teenage years some fifteen years back. Interestingly, when I read my own poems I feel they have been written by someone else.Do you also feel the same way ? I mean when you come to read a decade old poem :-))

    ****************************************

    Memories which would always be with me like a guiding star,

    I wish they never part from me,

    Let they be always on my side till doomsday,

    Yes, only thing I like to be surrounded by

    When I fall asleep in the arms of death forever.

    http://www.booksie.com/poetry/poetry/munna/mem0ries

    **************************************

  4. सुबह यह कविता देखी थी। सोचा शाम को पढेंगे। अब रात हो गयी। ओस की बूंद का जिक्र देखकर अपनी एक कविता याद आ गयी जिसमें ओस की बूंद का जिक्र है।

    अमरेन्द्र गुणी-ज्ञानी हैं। आप भी जे एन यू से हैं। दोनों का मामला एक ही मातृ संस्था का है सो आप उनसे निपटिये वैसे अगर उनके एतराज को मटियाना हो तो बहुत सारे तर्क यहां इस कविता के सवाल-जबाब में मौजूद हैं देखियेगा।

    एक सुन्दर, मनभावन कविता ! बधाई!

      1. हाँ, आपके दिये दोनों लिंक देखे. बहुत अच्छे लगे. सच में कुछ चीज़ों पर बहस नहीं हो सकती. कुछ चीज़ों का हिसाब-किताब नहीं हो सकता.

  5. बहुत हृदयस्पर्शी -जे एन यू के विद्वान् द्वय से क्षमानिवेदन सहित यह की कविता में व्याकरण
    उपेक्षित हो सकता है -मगर हाँ संशोदन उचित था -कविता और निखरी है .

  6. आया होली की शुभकामना देने , अटक गया कविता और व्याकरण के
    पारस्परिक सम्बन्ध पर ………….
    व्याकरण काव्य-शिल्प का अनिवार्य घटक है , ऐसा कभी नहीं कहा जा सकता ..
    हिन्दी कविता में तो सहायक क्रियाएं अक्सर भावुकता को सघन बनाने के लिए
    प्रारंभ में आ जाती है , छायावादी कविता इसका उदाहरण है … अन्य व्याकरण
    के विधान भी शिथिल हो जाते है कविता में , पर यह शिथिलता भी काव्यत्व के
    निर्वाह की कीमत पर आती है .. कामायनी में व्याकरण की शिथिलता को दिनकर ने
    ” कामायनी ; दोषरहित दूषणसहित ” वाले निबंध में दिखाया है .. सो यह किसी आलोचक
    के ऊपर निर्भर करता है वह खटकने को किस रूप में लेता है …
    .
    जहाँ मैंने समस्या उठाई थी वहां प्रथम पढ़त में ही खटकन आयी थी और यह भी नहीं लगा
    कि काव्यत्व निर्वाह के लिए ऐसा हुआ है , मुझे यह ” ध्यान न जाने ” के कारण घटा सा
    लगा , और मैंने कहा कि ” कविता में कलरव शब्द के विधान को यथेष्ट न्याय
    नहीं मिल सका है ! ” ……….. और बाद में सुधार के बाद रचनात्मकता का बढना मुझे
    और भी ज्यादा पसाद आया …
    .
    मेरा मानना यही है कि कविता में व्याकरण वहीं तक शिथिल हो जहाँ सृजनात्मकता
    के लिए आवश्यक हो और पढ़ने में लगे ही नहीं कि कहीं भाषा की गरारी उलझ रही है ..
    बाकी रचनाकार की मर्जी ……….
    …………………………………………………………………………………………………………….
    ………. होली की ढेर सारी शुभकामनाएं ………….

  7. khoob-khoob sari baaten ho chuki yahaan to….ham to ab yaahi kahkar sarak lete hain ki apun ko kavita acchhi lagi.. dhatt lekin ek aur baat kiye bagair ham jaa hi nahin sakte.. vo ye ki vyaakaran beshak peechhe chod dee jaaye…kintu kisi bhi cheez ke kahe jane men ek maadhurya….ek bhaav…ya aisa kuchh bhi jo man ko sateek dhang se choo jaaye…aisa to hona hi hota hai…aur vyakaran darasal use behatar banane ke liye hi hai…hai naa….jaise ek naya sa joota ho magar ho vo bina polish kiya hua…to vo aapko kaisa lagega….beshak aap sunadar ho..magar jo aap neend se bhari aaknkh liye ulte-pulte dhang se dikhayi doge to kaisa lagega…!!
    jaroori to kuchh nahin hota…magar agar kuchh cheezon se cheezen agar behatar ban jaati hon to unhen unke saath banaye rakhna hi acchha hota hai….hai naa… kavita beshak acchhi hai…kintu ab jaise aakhiri pankti men “karakati”shabd ka prayog hai….ab ye bhalaa kyaa hai…kahin kuchh gadbad hai naa……bas isiliye sab cheezon kee jarurat hoti hai….theek vaise hi jaise sabji men sab masalon kee sahi matra kee….hai naa…..!!

  8. http://baatpuraanihai.blogspot.com/
    खूब -खूब सारी बातें हो चुकी यहाँ तो ….हम तो अब यही कहकर सरक लेते हैं की अपुन को कविता अच्छी लगी .. धत्त लेकिन एक और बात किये बगैर हम जा ही नहीं सकते .. वो ये कि व्याकरण बेशक पीछे छोड़ दी जाए …किन्तु किसी भी चीज़ के कहे जाने में एक माधुर्य ….एक भाव …या ऐसा कुछ भी जो मन को सटीक ढंग से छू जाए …ऐसा तो होना ही होता है …और व्याकरण दरअसल उसे बेहतर बनाने के लिए ही है …है ना ….जैसे एक नया सा जूता हो मगर हो वो बिना पोलिश किया हुआ …तो वो आपको कैसा लगेगा ….बेशक आप सुन्दर हो ..मगर जो आप नींद से भरी आँख लिए उलटे -पुल्टे ढंग से दिखाई दोगे तो कैसा लगेगा …!!
    जरूरी तो कुछ नहीं होता …मगर अगर कुछ चीज़ों से चीज़ें अगर बेहतर बन जाती हों तो उन्हें उनके साथ बनाये रखना ही अच्छा होता है ….है ना … कविता बेशक अच्छी है …किन्तु अब जैसे आखिरी पंक्ति में “karakati ”शब्द का प्रयोग है ….अब ये भला क्या है …कहीं कुछ गड़बड़ है ना ……बस इसीलिए सब चीज़ों की जरुरत होती है ….ठीक वैसे ही जैसे सब्जी में सब मसलों की सही मात्र की….है ना…..!!

    1. मैं आपकी बात से सहमत हूँ. व्याकरण के महत्त्व वाली बात से. जहाँ तक करकती है का सवाल है, तो ये एक ऐसा शब्द है, जिसके स्थान पर कोई और शब्द ठीक नहीं बैठता. “करकन” कोई व्याकरण सम्मत शब्द नहीं है, देशिक शब्द है, जिसे महसूस किया जा सकता है. यह वैसा ही है, जैसे भोजपुरी में “गड़ना” और “अँड़सना” शब्द हैं, जिनके लिये शुद्ध हिन्दी में कोई सटीक शब्द नहीं है.

  9. एक सुबह,
    बांस की पत्ती के कोने पर अटकी
    ओस की बूँद
    कैद कर ली थी,
    आँखों के कैमरे में
    आज भी कभी-कभी वो
    बंद पलकों में
    उतरती है,

    बेहतरीन पंक्तियां

    पपी ….सुंदर है . स्नेप्स चुरा रहा हूं..चुरा लूं ?

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